Madhu varma

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लेखनी कविता - उस दिन जब जीवन के पथ में- जयशंकर प्रसाद

उस दिन जब जीवन के पथ में- जयशंकर प्रसाद


उस दिन जब जीवन के पथ में,
 छिन्न पात्र ले कम्पित कर में ,
 मधु-भिक्षा की रटन अधर में ,
 इस अनजाने निकट नगर में ,
 आ पँहुचा था एक अकिंचन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
 लोगों की आँखे ललचाईं ,
 स्वयं मानने को कुछ आईं ,
 मधु सरिता उफनी अकुलाई ,
 देने को अपना संचित धन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
 फूलों ने पंखुरियाँ खोलीं ,
 आँखें करने लगी ठिठोली ;
 हृदयों ने न सम्भाली झोली ,
 लुटने लगे विकल पगन मन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
 छिन्न पात्र में था भर आता –
 वह रस बरबस था न समाता;
 स्वयं चकित सा समझ न पाता
 कहाँ छिपा था ऐसा मधुवन !
उस दिन जब जीवन के पथ में,
 मधु-मंगल की वर्षा होती,
 काँटों ने भी पहना मोती
 जिसे बटोर रही थी रोती-
 आशा, समझ मिला अपना धन .

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